गढ़चिरौली: दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर जी.एन.साईबाबा,जिन्हें नक्सलियों की मदद करने के संदेह में 10 साल तक जेल में रखा गया था, का शनिवार १२ अक्टुबर को रात साडेआठ बजे निधन हो गया.
मूत्राशय में संक्रमण, किडनी और दिल का दौरा पड़ने के कारण हैदराबाद के एमआईएमएस अस्पताल में पांच दिन पहले साईबाबा की पित्ताशय की सर्जरी हुई थी. फिर जब हालत में सुधार हो रहा था तो अचानक पित्ताशय में मवाद बन गया. बुखार और कमर दर्द शुरू हो गया. पित्ताशय से मवाद निकलने के कारण पेट से रक्तस्राव शुरू हो गया. रक्तचाप भी कम हो गया. किडनी फेल होने लगी और दिल का दौरा पड़ने से उनकी जान चली गई.
दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर जीएन साईबाबा (47) निवासी, दिल्ली, कुंजबर्गल, जिला अल्मोडा, उत्तराखंड के रहने वाले जेएनयु छात्र हेम मिश्रा (32), देहरादून, उत्तराखंड के पत्रकार प्रशांत राही (54), मुरेवाड़ा के महेश तिरकी और पांडु नरोटे (27) इनके खिलाफ 2013 में अहेरी पुलिस स्टेशन में गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम, 1967 की धारा 13, 18, 20, 38, 39 और आईपीसी की धारा 120 (बी) के तहत मामला दर्ज किया गया था. प्रोफेसर साईबाबा को 9 मई 2014 को दिल्ली में उनके आवास से गिरफ्तार किया गया था. बाद में 7 मार्च 2017 को गढ़चिरौली के जिला और सत्र न्यायालय ने उपरोक्त आरोपी को आजीवन कारावास की सजा सुनाई, जबकि एक अन्य आरोपी बेलोदा, जिला पखांजूर, छत्तीसगढ़ के विजय तिर्की (30) को सजा सुनाई गई. उन्हें 10 वर्ष के कठोर कारावास की सजा सुनाई गई.
इसके बाद उन्होंने बॉम्बे हाई कोर्ट की नागपुर बेंच में अपील की. 14 अक्टूबर, 2022 को नागपुर पीठ ने उन्हें जेल से रिहा करने का आदेश दिया. लेकिन राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की और अगले ही दिन सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के आदेश को रद्द कर दिया. फिर मार्च 2024 में नागपुर बेंच ने साईबाबा को इस आधार पर बरी कर दिया कि सरकारी पक्ष उनके खिलाफ आरोप साबित नहीं कर सका. प्रो. साईबाबा की हालत जेल में भी खराब हो गई, उनके शरीर का 70 प्रतिशत से अधिक हिस्सा विकृत हो गया. वहां से मुक्त होने के बाद भी बीमारी ने उनका पीछा नहीं छोड़ा. आखिरकार शनिवार को उनका निधन हो गया.